Friday, October 28, 2011

बोलते वि‍चार 27 - क्या पढ़ें, क्या नहीं



बोलते वि‍चार 27
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा


यों तो पढ़ने के लिए लाइब्रेरियाँ भरी पड़ी हैं,पर चूँकि हमारी जिन्दगी सब कुछ पढ़ डालने के नाम पर बहुत छोटी है, इसलिये ‘क्या पढ़ना है, क्या नहीं’, इसका चयन करना बहुत जरूरी है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि यहजानने की तुलना में कि हमें क्या-क्या पड़ना चाहिये,यह जानना बहुत जरूरी है कि हमें क्या-क्या नहीं पढ़ना चाहिये।
एक छात्र बुद्धि से बहुत अच्छा था और पढ़ता भी बहुत था;लेकिन परीक्षाओं में अपेक्षा से काफी कम अंक पाता था। कारण सिर्फ यह था कि वह अपने पाठ्यक्रम के हिसाब से अगर बीस पूर्णांकों के लिये एक किताब पढ़ता था तो पाँच पूर्णांकों के लिये चार-पाँच किताबें पढ़ता था। अपनी रूचियों की दृष्टि से उसमें पर्याप्त ज्ञान था,पर उपाधियों की दृष्टि से उसका ज्ञान उसके काम नहीं आया। उसे अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई।

एक साहब के सामने समय काटने की समस्या है। वे दिन-रात जासूसी उपन्यास पढ़ते रहते हैं। उनके लिए अन्य सम्पूर्ण साहित्य बेकार है। दूसरे साहब जासूरी क्या,ऊँचे-से-ऊँचे साहित्यिक उपन्यास को भी हाथ नहीं लगाते। उनका कहना है कि जितने समय में एक उपन्यास पढ़ा जाता है उतने समय में वे अपने काम के तीन-चार दर्जन लेख पढ़ लेते हैं।

दरअसल, आपको अपनी आवश्यकता और लक्ष्य को देखते हुए ही यह निर्धारित करना होता है कि आपके लिए क्या पढ़ना उपयोगी है और आपके पास उसके लिए कितना समय है। जो लोग पढ़ने-लिखने के प्रति गंभीर होते हैं, वे सिर्फ अखबार के समाचारों तक ही सीमित नहीं रहते।

आप अपने विवेक से, निश्चित रूप से, यह निर्णय ले सकतें हैं कि आपको क्या-क्या पढ़ने से आपका समय बरबाद होता है। एक स्थापित साहित्यकार है,जो किसी पत्रिका के मिलते ही उसकी विषय-सूची को पढ़ते हुए उन-उन शीर्षकों को टिक कर देते हैं, जिनसे उन्हें आगे मतलब होता है; पत्रिका के शेष सारे शीर्षकों के पृष्ठ उनके लिए बेकार होते हैं।

यहाँ तक तो समझ में आता है कि दैनिक समाचार पत्रों में कुछ लोग स्पोर्टस वाला पृष्ठ छोउ़ देते हैं, कुछ शेयर बाजार वाला छोड़ देते हैं,कुछ फिल्मों के विज्ञापन वाला छोड़ देते हैं और कुछ कविता और कहानी छोड़ देते हैं; पर जो लोग अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल पर छापा जाने वाला आधी लाईन का नीति वाक्य छोड़ देते हैं, उनसे भगवान बजाए।

पते की एक बात और कि जैसे आवारा और बदचलन दोस्तों की सोहबत में रहने वाले बच्चे अकसर बिगड़ जाया करते हैं वैसे ही घटिया लेखन को पढ़ने वालों के विचार भी घटिया होने लगते हैं। आप क्या पढ़ते हैं और क्या छोड़ देते हैं,इसके लेखे-जोखे से आपकी जन्म-कुंडली बनाई जा सकती है - सामान्य भी और मंगली भी।

Production & Libra Media Group, Bilaspur (C.G.) India

3 comments:

  1. जैसे आवारा और बदचलन दोस्तों की सोहबत में रहने वाले बच्चे अकसर बिगड़ जाया करते हैं वैसे ही घटिया लेखन को पढ़ने वालों के विचार भी घटिया होने लगते हैं। आप क्या पढ़ते हैं और क्या छोड़ देते हैं,इसके लेखे-जोखे से आपकी जन्म-कुंडली बनाई जा सकती है - सामान्य भी और मंगली भी।
    बढिया लिखा है ..
    पर मेरे हिसाब से किसी की जन्‍मकुंडली बनायी नहीं जा सकती .. वो निश्चित है और उसके हिसाब से व्‍यक्ति का स्‍वभाव और व्‍यवहार भी .. कर्मकुंडली आप अवश्‍य बना सकती हैं ..

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  2. दीपावली पर शुभकामनायें स्वीकार करें !

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