प्रत्येक व्यक्ति से सीखना
बोलते विचार 28
आलेख व स्वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा
कोई भी दो व्यक्ति बिलकुल एक जैसे नहीं हो सकते, जिसका मतलब है कि हर दूसरे व्यक्ति में कोई-न-कोई बात अन्यों से भिन्न होती है - उसका वातावरण और स्वभाव भिन्न होता है, उसके संपर्क और अनुभव अलग होते हैं। बस यहीं इस तथ्य का आधार छिपा हुआ है कि हम प्रत्येक व्यक्ति से उसके अनुभवों के ऐसे अंश ग्रहण कर सकते हैं, जिन्हें हमने अभी तक प्राप्त नहीं किया है। सीखने की सीढि़यों का कभी अंत नहीं हो सकता, क्योंकि पूर्णता तक पहुँचना आसमान की ऊँचाई तक पहुंचने के समान है।
एक उदाहरण लें। किसी युवक से कोई वयोवृद्ध भी वे सारी बातें सीख सकता है, जो युवक के भिन्न व्यवसाय या सेवा से संबंधित हो, जो युवक के भिन्न अध्ययन से संबंधित हों, जो युवक के जमाने से संबंधित हों और वे युवक की अपनी दुनिया से संबंधित हों।
यों तो हर आदमी में कुछ अच्छाईयाँ होती हैं, क्योंकि कोई भी आदमी सौ प्रतिशत बुरा नहीं हो सकता; लेकिन हम अधिक बुराईयों वाले से भी बहुत कुछ लें सकते हैं। हमें कितनी ही शिक्षाएँ बुरे लोगों के द्वारा किए गए कामों के दंडस्वरूप उन्हें मिली सजाओं से मिलती है। यह बात कि बुरा काम नहीं करना है, बुरों को बुरी हालत में देखकर आसानी से समझी जा सकती है।
अच्छा आदमी हर तरफ अच्छाई ढूँढ़ता है। वह बुरों की बुराईयों को अनदेखा करके उनकी भी सिर्फ अच्छाईयाँ देखता है। इसके विपरीत, जिसे दूसरों की सिर्फ बुराईयाँ दीखती हैं, वह अपने को बुराईप्रिय और बुराईपुंज प्रमाणित करता है। उसके भीतर की बुराईयों का परदा उसकी आँखों पर बनकर इस प्रकार छा जाता है कि वह दूसरों की अच्छाईयों को भीतर नहीं घुसने देता।
आदमी में बुराईयों का होना बिलकुल अस्वाभाविक नहीं है; लेकिन उन्हें दूर करने के लिये कोई प्रयास न करना बहुत बुरा है। यदि कहीं की सफाई न करो तो गंदगी की परत के ऊपर परत चढ़ती चली जाती है और कालांतर में वहाँ सड़न पैदा होने लगती है। विविध धर्मग्रन्थों में, जगह-जगह होने वाले प्रचवचनों में, चिंतन संबंधी प्रसारणों में, संत-महात्माओं की जीविनियों में, सुविचारों और अनमोल वचनों से संबंधित लेखों तथा सूक्तियों में यही संदेश निहित रहता है कि आदमी को स्वयं और समाज के लिये अधिकाधिक अच्छा बनने की आवश्यकता है।
अच्छा बनने की राह में जिस व्यक्ति से कुछ सीखा जाता है, उसका बड़ा-छोटा होना महत्वपूर्ण नहीं है;महत्वपूर्ण है उससे सीखी जाने वाली बात। यदि किसी बहुत बड़ी हस्ती में कोई ऐब है तो वह त्याज्य है और यदि किसी बहुत छोटे आदमी में कोई सद्गगुण है तो वह ग्राह्य है। मानव का लक्ष्य मानवता की प्राप्ति है, व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व की प्राप्ति नहीं। उसका आदर्श सार्वभौम अच्छाई है, सीमित अच्छाई नहीं। उसे ब्रम्ह का अंश कहा जाता है। उसके अंदर भगवान् का निवास माना जाता है। इससे सिद्ध है कि उसमें प्रच्छन्न रूप से इतनी अधिक शक्ति मौजूद रहती है कि वह अपने भीतर से सत् तत्व का सहारा लेकर अपनी सारी राक्षसी वृत्तियों का दमन कर सकता है और कितना भी अच्छा और कितना भी बड़ा बन सकता है। अपना निर्माता वह स्वयं है, जिसके लिये वह प्रेरणा और संबल कहीं से भी, किसी से भी ले सकता है। यदि वह हर व्यक्ति से कुछ लेने और सीखने का रास्ता खुला रखे तो उसकी उपलब्धियों की कोई सीमा नहीं रहेगी।
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सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
ReplyDeleteआभार।
i like
ReplyDeletevery truly said....thnx... a lot for sharing...Sangya ji...KNOWLEDGE IS VERY VAST SUBJECT....END LESS.....
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