Wednesday, October 5, 2011

बोलते वि‍चार 21 - स्‍वयं को सुधारि‍ये बस..

 हर साधारण आदमी का मन करता है कि वह दूसरों को सुधारे। हर आसाधरण आदमी का मन करता है कि वह स्वयं को सुधारे।

जो लोग सुधरना चाहते हैं, वे पहले से सुधरे-हुए लोगों को देख-सुन-पढ़-समझकर स्वयं सुधरने लगते हैं। जो लोग नहीं सुधरना चाहते उन्हें कोई नहीं सुधार सकता। (एक बार लोकसभा अध्यक्ष ने कहा था कि हमारे कुछ सांसदों को शिष्टाचार कोई नहीं सिखा सकता!)

 आप दूसरों को सुधारने का ठेका बिलकुल न लें। यदि आप स्वयं सुधरे हुए हैं तो सुधरना चाहने वाले अन्य व्यक्ति आपसे निश्चित रूप से प्रेरणा लेगे।

दूसरी ओर, इस चरम सत्य को भी न भूलें कि धरती पर न सुधरनेवाले लोगों का अस्तित्व भी अनिवार्य है। कारण ये हैं-
(1) कुछ लोगों का बुद्धिहीन होना उनकी नियति है,
(2) कुछ लोगों का बुद्धिमान होते हुए भी सदा अडि़यल रहना उनकी नियति है
(3) कुछ लोगों को सुधरने के नाम पर अनिच्छुल और लगनहीन होना उनकी नियति हैं।
लेकिन यदि किसी में स्वयं को सुधारने की इच्छा और लगन है तो उसे अच्छा बनने से कोई नहीं रोक सकता।

यों आपको सुधारने के लिए लोग आपके चारों तरफ मँडराते हुए मिलेंगे,पर आप इस मामले में उनकी परवाह बिलकुल मत कीजिए। सिर्फ अपनी परवाह कीजिए। आप अपनी करनी और अपने कर्मों के खुद ही मालिक हैं-फल के भी। बनानेवाले भी और बिगाड़नेवाले थे।

संसार में बुराइयाँ सिर्फ इसलिए है कि हम खुद अच्छे न होते हुए भी दिन रात दूसरों को सुधारने के लिए दुबले होते रहते हैं। यदि हम सिर्फ अपने को अच्छा बना लें-यदि हर आदमी सिर्फ अपने को अच्छा बना ले तो सारा संसार अच्छा ही जाए। बच्चे अच्छे अभिभावकों जैसे बन जाएँ। शिष्य अच्छे गुरूओं जैसे ‘बन जाएँ। भक्त अच्छे आराध्यों जैसे बन जाएँ।

Production - Libra Media Group, Bilaspur (C.G.) India

2 comments:

  1. अच्‍छी सीख।
    कहा भी गया है, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।

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  2. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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