हम अपने बारे में ‘खुद’ क्या सोचते हैं और हमारे बारे में ‘दूसरे लोग’ क्या सोचते हैं-सफलता के लिए इन दोनों ही बातों पर ध्यान देना जरूरी हैं। पहली बात पर इसलिए कि आदमी के जैसे विचार होते हैं वह वैसा ही बन जाता है और दूसरी बात पर इसलिए कि आदमी स्वयं अपना मूल्यांकन ठीक से नहीं कर पाता। हम अपनी नजरों में चाहे कितने ही गुणी क्यों न हों, यदि दूसरे लोग हमें इस तथ्य का प्रमाणपत्र नहीं देते हैं तो हम जंगल में नाचनेवाले मोर के समान हो जाएँगे। दूसरों की अपने बारे में राय के महत्व के कारण ही कहा जाता है कि ईमानदार होना मात्र पर्याप्त नहीं है, ईमानदार दीखना भी जरूरी है।
जितना जरूरी दूसरों की अपने प्रति अच्छी राय का होना है उतना ही जरूरी यह जानना है कि वे ‘दूसरे’ किस स्तर के लोग हैं। आपको इस बात की बिलकुल परवाह नहीं करनी है कि आपके बारे में चोर-उचक्के क्या सोचते हैं। गांधीजी के बारे में दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियाँ और अन्य करोड़ों ‘सामान्य’ आदमी क्या सोचते थे, यह महत्वपूर्ण है, न कि यह कि गोडसे क्या सोचता था।
हर आदमी का एक सामजिक दायरा होता है। वह उत्तरदायी भी सबके प्रति नहीं, वर्ग विशेष के प्रति ही होता है। अपने दायरे के बाहर के लोगों को और जिनके प्रति वह उत्तरदायी नहीं होता उन लोगों को संतुष्ट कर पाना उसके लिए कई बार और भी कठिन होता है। उन असंतुष्ट व्यक्तियों की राय में वह अयोग्य और उनकी गालियों का शिकार होता है। लेकिन ऐसी स्थिति में उसे हताश होने की जरूरत तब नहीं होनी चाहिए जब उसे उसे लोग अच्छा मानते हों, जिनकी उसके प्रति राय वस्तुतः मायने रखती है। विद्यार्थी के सही परिश्रम का मूल्यांकन करना किसी अपढ़-गँवार का नहीं, उसके अध्यापक और परीक्षक का काम होता है। यदि आप खराब आदमी की राय में खराब हैं, तब तो आपको खुश होना चाहिए।
आप अपने कर्तव्य के प्रति चाहे किसी भी सीमा तक निष्ठावान् रहिए और चाहे कितने ही घंटे नित्य परिश्रम कीजिए, लेकिन अपने बॉस और अन्य सहकर्मियों, अपने परिवार और संगी-साथियों तथा अपने शुभचिंतकों और सामान्य मिलने-जुलनेवालों की उपेक्षा कभी मत कीजिएः क्योंकि उन सबकी आपके प्रति राय ही आपके सामाजिक जीवन की दिशा निर्धारित करती है। अपने को अच्छा और ऊँचा तथा सफल बनाने और दिखाने के लिए असामाजिक होना बिलकुल जरूरी नहीं हैं। यदि आप दुनिया का बहिष्कार करेंगे तो दुनिया आपका बहिष्कार करेगी। चैबीसों घंटे अपने में ही लिप्त रहनेवालों को लोग ‘पागल’ और सिर्फ अपनी तारीफ करनेवालों को ‘कृपमंडूक’ कहते हैं।
यदि आप अपने बारे में उतना ही अच्छा सोचते हैं जितना आपके बारे में ज्यादातर लोग सोचते हैं, तब आपको भविष्य में अपने असफल होने का भय नहीं रहेगा; क्योंकि तब आपके कार्यों का मूल्यांकन सही होगा। इसके विपरीत, यदि आप अपने प्रति अन्यों की राय की बिलकुल भी परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी राय को ढोते रहेंगे तो आपके विरोधियों की संख्या निरंतर बढ़ती चली जाएगी। इस प्रकार, सफलता का रास्ता चुनना स्वयं आपके हाथों में हैं।
Production - Libra Media Group, Bilaspur, India
बधाई आपको, अपनी बात प्रस्तुत करना चाहता हूँ...हम जो कुछ अपनी ज़िन्दगी में हासिल करते हैं, आसपास के लोगों से उसकी मान्यता चाहते हैं बल्कि यूँ कहें.. प्रशंसा चाहते हैं. मैं अपनी कहूँ तो एक साधारण से हलवाई की व्यवहारविज्ञान प्रबंधन के प्रशिक्षक बनने तक की यात्रा में बहुत से खट्टे मीठे अनुभव हुए, मेरी 'आत्मकथा-कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म' में इसके विवरण आयेंगे, कृपया पढियेगा। कुल मिला कर मुझे यह समझ में आया कि दूसरों कि प्रतिक्रिया या चेहरा देख कर खुश होने या दुखी होने में कोई सार नहीं। दूसरे कैसा सोचते हैं, अपनी बला से...... हमें अपना काम निर्लिप्त भाव से करते रहना चाहिए परन्तु यह भी सच है कि 'निर्लिप्तता' उतनी सहज नहीं।
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