बात दसों साल पहले की है। मेरी नानी पास के नगर से हमारे नगर, हमारे घर आई हुई थीं। उन्होंने कुछ पैसे देकर मुझे जलेबियाँ खरीदकर लाने के लिए बाजार भेजा। मेरे साथ मेरी छोटी बहन भी थी। हम सड़क पर पड़ने वाली पहली अच्छी हलवाई की दुकान से जलेबियाँ खरीदकर घर ले आए। वह दुकान मुसलमान की थी, जबकि हमारी नानी तरह-तरह के छुआछूत मानने वाली पुरातन पंथी हिन्दू थीं। नानी ने जलेबियाँ खूब प्रेम से खाई और उनकी तारीफ भी की। उस दिन की बात खत्म।
अगले दिन छोटी बहन ने बातों-बात में नानी को बता दिया कि हम जलेबियाँ एक मुसलमान हलवाई की दुकान से लाए थे। बस, फिर क्या था। नानी ने कोहराम मचा दिया। एक सौ एक बार कुल्ला किया। साथ ही उस दिन का उपवास किया और एक घंटा अतिरिक्त पूजा भी की।
जाहिर है कि यदि नानी को पता नहीं चलता कि जलेबियाँ कहाँ से खरीदी गई थीं, तब उनकी बुद्धि पूर्ववत् सही रहती। मतलब साफ है कि न तो जलेबियों में कोई खराबी थी और न हलवाई के मुसलमान होने में। जो कुछ था, नानी का अविवेक था।
हममें से अनेक लोग ऐसी न जाने कितनी फालतू बातों से बहककर सामाजिक प्रदूषण को बढ़ावा देते रहते हें। कमाल की बात यह है कि वही नानी जब दो दिन बाद अपने नगर वापस आईं तब ट्रेन के भीड़ भरे डिब्बे में चढ़ते समय जगह पाने के लिए जाति-धर्म से संबंधित सारी छुआछूत भूल गईं। उनके एक ओर मुसलिम महिला बैठी और दूसरी ओर दलित वर्ग की महिला।
सच्चाई यह है कि आदमी प्राकृतिक रूप से सिर्फ आदमी है। वह रंग-रूप और आकार- प्रकार के हिसाब से चाहे कितने ही वर्गों में बाँटा जा सके, उसकी मूल संरचना उसे पशु-पक्षियों से भिन्न सिर्फ ‘एक’ सिद्ध करती है। हम किसी नवजात शिशु को देखकर केवल यह बता सकते हैं कि वह ‘आदमी का’ बच्चा है, यह नहीं बता सकते कि वह किसी जाति और धर्म का बच्चा है। यदि हमें कोई न बताए तो यह बात उसके जीवनपर्यंत लागू रहेगी।
जब आदमी-आदमी के बीच जाति-धर्म का अंतर आरोपित अंतर है और इसके विपरीत मानवता सबके भीतर की मूल और स्थायी वस्तु है तो जाति-धर्म की तुलना में मानवता का स्थान अधिक ऊँचा माना जाना जरूरी है। यदि हमें किसी आदमी और उसकी चीजों से परहेज करना ही है तो उसके जाति-धर्म आदि को देखकर नहीं, उसके निजी ओछेपन और उसकी सड़ी-बुसी चीजों को देखकर करें।
प्रोडक्शन- लिब्रा मीडिया ग्रुप, बिलासपुर, भारत
सब इन्सान ने ही बनाया है,धरम,जाति,अछूत,दलित,सब के खून का रंग एक है,सब की शारीरिक रचना एक जैसी है ,कुदरत ने सब को एक सामान बनाया है,पर इन्सान ने अपने सीमित सोच से ही एक दूसरे को पराया और घ्रणास्पद बना कर ,नफरत की दीवार खड़ी कर ,लड़ने के लिए मैदान तैयार कर रखा है.
ReplyDeleteमहरोत्रा जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'सीजी स्वर' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 26 जुलाई को 'आदमी सिर्फ आदमी है।' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव