बोलते विचार 58
दूसरों के समय की इज्जत करें
एक साहब ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय ले रखा है। वे अपने घर में अकेले रहते हैं। उनके पैर किसी बीवी-बच्चों वाले के यहाँ रात को साढ़े नौ बजे के बाद भी जाने में नहीं ठिठकते। उस परिवार पर उनकी सरासर ज्यादती रहती है। परिवार वाले सज्जन उन साहब से यह कैसे कहें कि उन छड़े महोदय के पास बुद्धि नहीं है।
एक अन्य साहब का जब मन होता है, सुबह छह-साढ़े छह बजे ही हमारे घर आ धमकते हैं। वे अपने स्वास्थ्य-अभियान पर प्रातःकालीन भ्रमण के लिए निकलते हैं और वापसी में जब-तब हमारे यहाँ आ लदते हैं। वे कहते हैं कि वे हमारे दोस्त हैं। हम उनसे कैसे कहें कि वे शिष्टाचार का मतलब नहीं जानते।
उदाहृत लोग इस बात को बिलकुल नहीं सोच पाते कि दूसरों को भी निजी जीवन जीने का पूरा अधिकार है। यद्यपि एक ओर हमारे समाज में ‘अतिथि देवो भव’ स्वीकार किया जाता है, पर दूसरी ओर ‘बिन बुलाए मेहमान’ को असम्मान की दृष्टि से भी देखा जाता है। इसलिए जब कभी आपको किसी के यहाँ बिना पूर्व सूचना के जाना हो तब ऐसे समय मत जाइए जब वह अनुमानतः नित्यकर्म , भोजन, विश्राम आदि से निवृत्त न हुआ हो। इस संबंध में यह मानकर चलें कि दूसरे लोग आपका स्वागत तभी करेंगे जब आप उनकी सुविधा में सोचकर उसमें व्यवधान नहीं डालेंगे। यदि आप सिर्फ अपनी सुविधा देखकर किसी के यहाँ बार-बार ठँसना शुरू कर देते हैं, तब इस बात की संभावना बन जाती है कि वह व्यक्ति कुछ बार भले ही आपको बरदाश्त कर ले, पर बाद में अपने घर के अन्दर से कहलवाने लगेगा कि वह घर में नहीं है। यदि वह झूठ को बिलकुल पसंद करने वाला हुआ तो यह भी कहलवा सकता है कि आप उसके यहाँ गलत समय पर मत पहुँचा कीजिये। ऐसी नौबत आने पर कई बार मधुर संबंधों में भी गाँठ पड़ जाती है।
निष्कर्ष यह है कि यदि आपको दूसरों से अपनी इज्जत करवाते रहना है तो आप उनके समय की इज्जत करना न भूलें।
Production - Libra Media Group, Bilaspur, India
एक सही शिक्षा दी है अपने इस पोस्ट के माध्यम से ...!
ReplyDeleteआरती महरोत्रा जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग'सीजी स्वर'से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 21 जुलाई को 'दूसरों के समय की इज्जत करें' शिर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव